साहित्यकारों की दृष्टि में

व्यंग्य विधा को पूरी तरह समर्पित प्रेम जनमेजय व्यंग्य- लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं । उनका मानना है कि व्यंग्य लेखन के अनेक उपमान मैले हो चुके हैं । बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उनपर दिशायुक्त प्रहार करने की ।व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले प्रेम जनमेजय आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं । पिछले चौंतिस वर्षों से साहित्य रचना में सृजनरत इस साहित्कार ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभाई है। परंपरागत विषयों से हटकर प्रेम जनमेजय ने समाज में व्याप्त अर्थिक विसंगतियों तथा सांस्कृतिक प्रदूषण को चित्रित किया है ।

             व्यंग्य के प्रति गंभीर एवं सृजनात्मक चिंतन के चलते ही उन्होंनेंव्यंग्य यात्रा का प्रकाशन आरंभ किया । बहुत कम समय में ही इस पत्रिका ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। यह इस पत्रिका के प्रकाशन का ही परिणाम है कि वर्तमान में व्यंग्य से जुड़े मुद्दों पर गंभीर चर्चाएं हो रहीं हैं और सार्थक व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं । विद्वानों ने इसे हिंदी व्यंग्य साहित्य में राग दरबारी के बाद दूसरी महत्वपूर्ण घटना माना है । इस पत्रिका को सभी साहित्यकारों का महत्वपूर्ण सहयोग मिल रहा है । 

           प्रेम जनमेजय ने व्यंग्य-साहित्य में अपने योगदान के अतिरिक्त बाल-साहित्य और नवसाक्षर- लेखन में भी महत्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका निभाई है । शहद की चोरी’, ‘अगर ऐसा होता आदि बाल रचनाओं के कहानी संकलनों तथा नल्लूराम जैसे बाल उपन्यास के माध््यम से बालमनोविज्ञान की उनकी गहरी पकड़ को रेखांकित करते हैं । 

           नवसाक्षरों के लिए प्रेम जनमेजय ने खुदा का घड़ा’,‘हुड़क एवंमोबाईल देवता जैसी रचनाओं के माध््यम से नवसाक्षर लेखन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । यही नहीं समय-समय पर नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा पंचमंढ़ी, नैनीताल, भोपाल,पीसांगन, इलाहबाद आदि नगरों में नवसाक्षर लेखन पर आयोजित संगोष्ठियों में अपने वैचारिक योगदान के द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया है । 

           वरिष्ठ रचनाकार श्रीलाल शुक्ल के सहयोगी संपादक के रूप मे नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित हिंदी हास्य-व्यंग्य संकलन का प्रकाशन हिंदी -व्यंग्य- साहित्य को एक रेखांकित योगदान है । यही नहीं प्रेम जनमेजय नेबीसवीं शताब्दीःव्यंग्य रचनाएं का संपादन भी किया है । इसमें प्रेम जनमेजय ने बीसवीं शताब्दी के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की श्रेष्ठ व्यंगय रचनाओं का संपादन प्रस्तुत किया है । उन्होंने बीसवीं शताब्दी के व्यंग्य-साहित्य का चार पीढ़ियों का वैज्ञानिक वर्गीकरण भी किया है । हिंदी व्यंग्य के सौ लेखकों के इस संकलन में नीव शीर्षक के अंतर्गत बालकृष्ण भट्ट, राधाचरण गोस्वामी, बालमुकुंद गुप्त, प्रेमचंद,निराला,नागार्जुन आदि विशिष्ट रचनाकार हैंए उत्प्रेरक के रूप में पफणीश्वरनाथ रेणु, अमृतराय, धर्मवीर भारती,नामवरसिंह,आदि हैं तथा आधार के रूप में हरिशंकर परसाई,श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी आदि हैं । 

            रेडियो नाटक के क्षेत्र में भी प्रेम जनमेजय की उपलब्ध्यिां रेखांकित करने योग्य हैं। इन्होंने न केवल देखो कर्म कबीर का’, ‘पेन’ ‘दीवारें जैसे मौलिक रेडियो नाटकों की रचना की अपितु प्रख्यात रचनाकारों की कृतियोंमृगनयनी’ ‘डोरियन ग्रे का चित्रा’, रोम की नगरवध्ूा’, किरचें’, पत्थरों के सौदागर आदि की भी रचना की। ये नाटक अकाशवाणी के राष्ट्रीय प्रसारण से प्रसारित हुए एवं चर्चित हुए। 

            वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय में अतिथि आचार्य के रूप में भी हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इन्होंने न केवल वहां के साहित्य को हिंदी में अनूदित किया अपितु वहां के सामाजिक जीवन तथा सांस्कृतिक परिवेश को विभिन्न रचनाओं के माध््यम से हिंदी जगत तक पहुंचाया । इन्होंनें त्रिनिदाद की एकमात्र पंजीकृत संस्था हिंदी निधि के लिए वहां की प्रथम हिंदी पत्रिका हिंदी निधि स्वर का संपादन किया तथा विभिन्न योजनाओं के माध््यम से हिंदी साहित्य के लेखन, प्रचार एवं प्रसार में प्रशंसात्मक भूमिका निभाई । 

            इन्होनंे त्रिनिदाद और टोबैगो में अपने चार वर्ष के प्रवास के दौरान वहां के जनजीवन को गहराई से समझा और जहाजी भाईयों के योगदान को रेखांकित करती हुई जहाजी चालीसा काव्यकृति की रचना भी की । भारतवंशियों के महत्वपूर्ण योगदान पर आधरित जहाजी चालीसा का त्रिनिडाड और टुबैगो के  तत्कालीन प्रधनमंत्रा श्री वासुदेव पंाडेय ने लोकार्पण किया तथा इसका प्रकाशन वहां की स्थानीय संस्था ने किया । प्रतिवर्ष मई में होने वाले भारतीय आगमन दिवस पर इसका सस्वर पाठ होता है।  

            प्रेम जनमेजय ने राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर व्यंग्य पाठ किया है जिसमें उनको भरपूर सफलता मिली है । कथा यूके एवं नेहरू कलचरल सेंटर द्वारा लंदन में आयोजित तथा त्रिनिदाद में भारतीय उच्चायोग, महात्मा गांधी सांस्कृतिक केंद्र तथा  वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के लिबरल आर्टस द्वारा आयोजित लिट्रेरी वीक में उन्होनंे सिल्विया मूदी द्वारा अनूदित अपवनी व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया। बी एच ई एल भोपाल, हिंदी -भवन दिल्ली, ‘चौपल मुम्बई, साहित्य अकादमी मध््यप्रदेश, हिंदी अकादमी दिल्ली आदि अनेक संस्थाओं के आमंत्रण पर प्रेम जनमेजय ने देश के विभिन्न शहरों में अपनी व्यंग्य रचनाओं के मंच पर सफलतापूर्वक पाठ किया है । 

           रूसी सांस्कृतिक केंद्र दिल्ली की संस्था इंडो रशियन लिटरेरी क्लब के महासचिव के रूप में प्रेम जनमेजय ने न केवल हिंदी साहित्य पर अपितु रूसी साहित्य पर अनेक संगोष्ठियों का सपफल संचालन एवं संयोजन किया । वेस्ट इंडीज़ विश्वविद्यालय , हिन्दी निधि तथा भारतीय उच्चायोग द्वारा त्रिनिडाड में17 से 19 मई 2002 तक आयोजित त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के आयोजन में अकादमिक - समिति के अध्यक्ष तथा आयोजन समिति के सदस्य के रूप में तथा साहित्य अकादमी, सांस्कृतिक संबंध परिषद् एवं अक्षरम् के संयुक्त तत्वावधन में आयोजितप्रवासी हिंदी उत्सव -2006, 2007 एवं 2008 की अकादमिक समिति के संयोजक के रूप महत्वपूर्ण भूमिका रही ।

           प्रेम जनमेजय का पहला संकलन राजधनी में गंवार बहुत चर्चित रहा। इसके प्रकाशन को हिंदी जगत में महत्वपूर्ण माना गया। समय-समय पर इनके प्रकाशित विभिन्न व्यंग्य संकलनों का त्रिलोचन, नामवर सिंह, निर्मला जैन, कन्हैयालाल नंदन, रत्नाकर पांडेय,नरेंद्र कोहली,गंगाप्रसाद विमल आदि ने लोकार्पण किया है । प्रेम जनमेजय के व्यंग्य -लेखन को हिंदी साहित्य के सभी महत्वपूर्ण रचनाकारों एवं आलोचकों ने सराहा है । धर्मवीर भारती,कमलेश्वर, त्रिलोचन,नामवर सिंह, विज्येंद्र स्नातक, हरिशंकर परसाई, रवींद्रनाथ त्यागी, निर्मला जैन,अजित कुमार, नरेंद्र कोहली, कन्हैयालाल नंदन, रमेश उपाध््याय,भारत भारद्वाज, कमलकिशोर गोयनका, गंगाप्रसाद विमल, शेरजंग गर्ग, गोपाल चतुर्वेदी, हरिकृष्ण देवसरे जैसे वरिष्ठ रचनाकारों के साथ-साथ उनके समकालीन रचनाकारेां बालेंदु शेखर तिवारी, ज्ञान चतुर्वेदी, विष्णु नागर, हरीश नवल, दिविक रमेश, प्रताप सहगल, रमेश बतरा, महेश दर्पण, सुभाष चंदर, गिरीश पंकज, प्रदीप पंत, अनूप श्रीवास्तव आदि ने मुक्त कंठ से प्रेम जनमेजय के लेखन की प्रशंसा की है । उपरोक्त रचनाकारों में से कुछ की सम्मितियां प्रस्तुत हैं ।

नामवर सिंह-
राजधनी में सार्थक व्यंग्य लिखने वालों की कमी है, प्रेम जनमेजय व्यंग्य की शमा जलाए हुए हैं ।

प्रो0 निर्मला जैन--
व्यंग्य लेखन एक बहुत कठिन कर्म है जिसमें अपने को छिपाने की चतुराई नहीं चलती है । व्यंग्य लेखन और आत्मकथा लेखन में चतुराई नहीं चलती है । आप व्यंग्य के माध््यम से ऐसी मार करते हैं जो मार हो और लगे भी नहीं । प्रेम जनमेजय अपने लेखन के द्वारा ऐसा ही कठिन कर्म कर रहे हैं ।’

डॉ0 कन्हैयालाल नंदन
प्रेम जनमेजय जैसे ‘खतरनाक’ रचनाकारों से सावधन रहना चाहिए क्योंकि इनकी दृष्टि बहुत पैनी है । इनकी कलम ईमानदार कलम है जो अपनी विसंगतियों पर भी बेहिचक प्रहार करती है । वे दिशायुक्त प्रहार करते हैं और निरर्थक बहकते नहीं हैं । कुटिल खल कामी के गर्मागर्म बाजार में कौन नंगई कर रहा है और कौन इस सबमें उजला दिख रहा है इसका ज्ञान यह संकलन देता है ।

रमेश उपध््याय
प्रेम जनमेजय की एक बड़ी विशेषता है कि वह कथ्य के अनुरूप भाषा बदल देते हैं । यही कारण है कि एक व्यंग्य की भाषा दूसरे व्यंग्य की भाषा से अलग दिखाई देती है । कई बार एक ही व्यंग्य में भाषा के अनेक शेड दिखाई देते हैं । प्रेम का स्टैंड एक ऐसे सामान्य मानवतावादी का है जिसे चीजें खराब लगती हैं।

नरेंद्र कोहली
प्रेम की रचनाओं में एक सजग नागरिक के साथ-साथ एक मौलिक सर्जक के दर्शन सहज ही हो जाते हैं । व्यंग्यकार के लिए प्रखर भाषा ही नहीं, सूक्ष्म दृष्टि भी आवश्यक है। ... रचनाकार समाजिक घटनाओं का रडार होता है, इसे प्रेम ने अपने लेखन से बखूबी प्रमाणित किया है ।

भारत भारद्वाज
व्यंग्यकार के भीतर एक आलोचक बैठा होता है और ये आलोचक बहुत खतरनाक होता है । व्यंग्यकार अपने आसपास की चीजों को देखता है परंतु एक तटस्थ भाव से नहीं, वह उनपर जबरदस्त रिएक्ट करता है । एक निष्ठा और समपर्ण के साथ व्यंगय लिखा जाता है । व्यंग्यकार का अपने प्रति भी क्रिटिकल होना आवश्यक है । प्रेम जनमेजय ऐसे ही व्यंग्यकार हैं ।

शेरजंग गर्ग
प्रेम जनमेजय में व्यंग्य की सूझ बूझ है । फिल्म से लेकर इल्म तक के अल्म्बरदारों को व्यंग्य का निशाना बनाकर प्रेम जनमेजय ने सिद्ध कर दिया कि वे केवल हंसने-हंसाने के लिए व्यंग्य नहीं लिखते हैं। उनके पास सामाजिक विषयों और विसंगतियों को समझने की दृष्टि है । वे व्यंग्य की सार्थकता को समझते हैं और विसंगतियों की पहचान के लिए ईमानदारी से काम कर रहे हैं ।

डॉ0 ज्ञान चतुवेर्दी
प्रेम जनमेजय ने नई जमीन तोड़ी है और सही जगह तोड़ी है । प्रेम ने रेत में बीज डालने का काम किया है । उन्होंने अपनी सोच को तोड़कर बाहर आने का प्रयास किया है । जब प्रेम ने लिखना शुरु किया तब हिंदी में व्यंग्य -लेखन के तीन स्कूल चल रहे थे;आज भी चल रहे हैंद्ध-- परसाई स्कूल, शरद जोशी स्कूल और त्यागी स्कूल ं हर स्कूल की अपनी पद्धति, सिलेबस और केरीकुलम । ... मैं ये तो नहीं कहूंगा कि प्रेम जनमेजय स्कूल भी चल पड़ा है-- पर इधर के बहुत सारे युवा लेखन को पढ़कर लगता है कि प्रेम जनमेजय स्कूल का भी उद्घाटन हो गया है।

प्रदीप पंत
प्रेम जनमेजय उन गिने चुने व्यंग्य लेखकों में हैं जो तात्कालिक घटनाओं पर मात्र व्यंग्यात्मक टिप्पणियां नहीं करते हैं अपितु दूर तक मार करने वाली रचना का सृजन करते हैं ।

हरीश नवल
प्रेम का व्यंग्य प्रयोजनीय व्यंग्य है । प्रेम ने भूमिका में अपने जिस अकाल की चर्चा की है, वो अकाल नहीं है बहुत दिनों से जिस जमीन पर कोई फसल नहीं उस जमीन के अध्कि उर्वर होने की प्रक्रिया है । ये परती के बाद की परती-कथा है । प्रेम जनमेजय जैसा भाषिक प्रयोग हमारे समय के व्यंग्यकारों में बहुत कम है ।

दिविक रमेश
प्रेम जनमेजय उन गिने चुने व्यंग्यकारों में से हैं जिन्होंने व्यंग्य को फूहड़ होने से बाचाया है । भाषा पर इनकी पकड़ बहुत गहरी है । प्रेम जनमेजय की रचनाओं में एक तरह की महाकाव्यात्मकता है । ये खतरा मोल लेते हुए व्यंग्य करते हैं और स्वयं को भी कटघरे में रखते हैं । प्रेम की रचनाओं में हास्य की कमी है और ये व्यंग्य के साथ हास्य का घलमेल कम ही पसंद करते हैं और यही कारण है इनका हास्य भी चुटीला होता है ।

अजित कुमार
प्रेम जनमेजय के यहां व्यंग्य स्थितियों-वस्तुओं-व्यक्तिओं के निरूपण या विद्रूपण का परिचायक नहीं होता,बल्कि वह स्थितियों- वस्तुओं-व्यक्तिओं के उन चेहरों पर रोशनी डाले जाने से उभरता है, जो चेहरे मौजूद तो थे पहले से ही पर उनकी ओर हमारा ध््यान अब तक नहीं गया था-- सर्चलाईट पड़ने पर हमने उन्हें गौर से देखा ।

नरेंद्र कोहली
प्रेम की रचनाओं में एक सजग नागरिक के साथ-साथ एक मौलिक सर्जक के दर्शन सहज ही हो जाते हैं । व्यंग्यकार के लिए प्रखर भाषा ही नहीं, सूक्ष्म दृष्टि भी आवश्यक है। ... रचनाकार समाजिक घटनाओं का रडार होता है, इसे प्रेम ने अपने लेखन से बखूबी प्रमाणित किया है ।

गंगा प्रसाद विमल
प्रेम जनमेजय ने जब लिखना शुरु किया तो परसाई,जोशी,शुक्ल और त्यागी हमारे सामने देश की विसंगतियों को ला चुके थे । प्रेम ने उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। एक प्रकार की सामाजिक जिम्मेदारी, जो उनके अग्रणी रचनाकारों में दिखाई देती है,उसमें प्रेम ने अपने को ढाला है। इसलिए उन पर यह आरोप नहीं लग सकता कि उन्होने मनोरंजन के लिए लिखा है । आज के समय में जो हम कविता में कहना चाहते हैं, उसे प्रेम ने साफ-साफ व्यंग्य में कहा है ।

सुभाषचंदर
डॉ0 प्रेम जनमेजय गंभीर सरोकारपरक व्यंग्यकर्म के प्रबल पक्षधर हैं। व्यंग्य में हास्य को अनावश्यक मानने वाले इस प्रतिभाशाली व्यंग्यकार ने राजनीति,शिक्षा,साहित्य,संस्कृति,प्रशासन सभी क्षेत्रों की विसंगतियों पर धारदार प्रहार किये हैं ।